Saturday 11 April 2020

भारत का इतिहास :- दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश

पल्ल्व वंश

> पल्लव वंश का संस्थापक सिंहविष्णु (575-600 ई०) था इसकी राजधानी काँची (तमिलनाडु में काँचीपुरम) थी। वह वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
> किरातार्जुनीयम के लेखक भारवि सिंहविष्णु के दरबार में रहते थे।
> पल्लव वंश के प्रमुख शासक हुए  क्रमशः महेन्द्र वर्मन प्रथम (600-630 ईo) नरसिंह वर्मन प्रथम (630-668 ई०), महेन्द्र वर्मन द्वितीय (668-670), परमेश्वर वर्मन प्रथम (670-680 ई०), नरसिंहवर्मन-II (704-728), नंदिवर्मन II (731-795)।
> पल्लव वंश का अंतिम शासक अपराजित ( 879-897 ई०) हुआ।
> मतविलास प्रहसन की रचना महेन्द्रवर्मन ने की थी।
> महाबलीपुरम् के एकाश्म मंदिर जिन्हें रथ कहा गया है का निर्माण पल्लव राजा नरसिंह वर्मन प्रथम के द्वारा करवाया गया था। रथ मंदिरों में सबसे छोटा द्रोपदी रथ है जिसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं मिलता है।
> वातपीकोण्ड की उपाधि नरसिंहवर्मन प्रथम ने धारण की थी।
> अरबों के आक्रामण के समय पल्लवों का शासक नरसिंहवर्मन-II था। उसने 'राजासिंह' (राजाओं में सिंह), 'आगमप्रिय' (शास्त्रों का प्रेमी) और शंकरभक्त (शिव का उपासक) की उपाधियाँ धारण की। उसने काँची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण करवाया । जिसे राजसिद्धेश्वर मंदिर भी कहा जाता है इसी मंदिर के निर्माण से द्रविड़ स्थापत्य कला की शुरूआत हुई। (महावलिपूरम् में शोर मंदिर)
> शकुमारचरित के लेखक दण्डी नरसिंहवर्मन (द्वितीय) के दरबार में रहते थे ।
> कौँची के मुक्तेश्वर मंदिर तथा वैकुण्ठ पेरूमाल मंदिर का निर्माण नन्दिवर्मन द्वितीय ने कराया।
> प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमङगई अलवार नन्दिवर्मन द्वितीय के समकालीन थे

राष्ट्रकूट

> राष्ट्रकूट राजवंश का संस्थापक दन्तिदुर्ग (752 ई०) या।
> इसकी राजधानी मनकिर या मान्यखेत (वर्तमान मालखेड़, शोलापुर के निकट) थी।
> राष्ट्रकूट वंश के प्रमुख शासक थे  कृष्ण प्रथम, धुव, गोविन्द तृतीय, अमोघवर्ष, कृष्ण-II. इन्द्र-111, एवं कृष्ण-III ।
> ऐलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने करवाया था।
> ध्रुव राष्ट्रकूट वंश फा पहला शासक था, जिसने कन्नौज पर अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया और प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया।
> ध्रुव को धारावर्ष भी कहा जाता था।
> गोविन्द तृतीय ने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग खेकर चक्रायुद्ध एवं उसके संरक्षक धर्मपाल तथा प्रतिहार वंश के शासक नागभड्व-II को पराजित किया।
> पल्लव, पाण्ड्य, केरल एवं गंग शासकों के संघ को गोविन्द-III ने नष्ट किया।
> अमोघवर्ष जैनधर्म का अनुयायी था। इसने कन्नड़ में कविराजमार्ग की रचना की।
> आदिपुराण के रचनाकार जिनसेन, गणितासार संग्रह के लेखक महावीराचार्य एवं अमोघवृत्ति के लेखक सक्तायना अमोघवर्ष के दरबार में रहते थे।
> अमोघवर्ष ने तुंगभद्रा नदी में जल समाधि लेकर अपने जीवन का अंत किया।
> इन्द्र-III के शासन काल में अरब निवासी अलमसूदी भारत आया; इसने तत्कालीन राष्ट्रकूट शासकों को भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक कहा।
> राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक कृष्ण-III था। इसी के दरबार में कन्नड़ भाषा के कवि पोन्न रहते थे जिन्होंने शान्ति पुराण की रचना की।
> कल्याणी के चालुक्य तैलप-II ने 973 ई० में कर्क को हराकर राष्ट्रकूट राज्य पर अपना अधिकार कर लिया और कल्याणी के चालुक्य वंश की नींव डाली।
> ऐलोरा एवं ऐलिफेंटा (महाराष्ट्र) गुहामंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूटों के समय ही हुआ ।
> ऐलोरा में 34 शैलकृत गुफाएँ हैं। इसमें 1 से 12 तक बौद्धों, 13 से 29 तक हिन्दुओं एवं 30 से 34 तक जैनों की गुफाएँ हैं।
> राष्ट्रकूट शैव, वैष्णव, शाक्त सम्प्रदायों के साथ-साथ जैन धर्म के भी उपासक थे।
> राष्ट्रकूटों ने अपने राज्यों में मुसलमान व्यापारियों को बसने तथा इस्लाम के प्रचार की स्वीकृति दी थी।

चालुक्य वंश (कल्याणी)

> कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना तैउप-II ने की थी। (राजधानी-मान्यखेट
> चालुक्य यंश (कल्याणी) के प्रमुख शासक हुए- तैलप प्रथम, तैलप द्वितीय, विक्रमादित्य, जयसिंह, सोमेश्वर, सोमेश्वर-II, विक्रमादित्य-VI, सोमेश्वर- III एवं तैलप-III ।
> सोमेश्वर प्रथम ने मान्यखेट से राजधानी हटाकर कल्याणी (कर्नाटक) को बनाया।
> इस वंश का सबसे प्रतापी शासक विक्रमादित्य-VI था।
> विल्हण एवं विज्ञानेश्वर विक्रमादित्य-VI के दरबार में ही रहते थे।
> मिताक्षरा (हिन्दु विधि ग्रंथ, याज्ञवल्क्य स्मृति पर व्याख्या) नामक ग्रंथ की रचना महान विधिवेत्ता विज्ञानेश्वर ने की थी।
> विक्रमांकदेवचरित की रचना विल्हण ने की थी। इसमें विक्रमादित्य-VI के जीवन पर प्रकाश डाला गया है।

चालुक्य वंश (वातापी)

> जयसिंह ने वातापी के चालुक्य वंश की स्थापना की जिसकी राजधानी वातापी (बीजापुर के निकट) थी। इस यंश के प्रमुख शासक ये-पुलकेशिन प्रथम, कीर्त्तिवर्मन, पुलकेशिन- II विक्रमादित्य, विनयदित्य एवं विजयादित्य । इनमें सबसे प्रतापी राजा पुलकेशिन-II था।
> महाकूट स्तभ्भ लेख से प्रमाणित होता है कि पुलकेशिन- I बहु सुवर्ण एवं अग्निष्टोम यज्ञ सम्पन्न करवाया था। जिनेन्द्र का मेगुती मंदिर पुलकेशिन-II ने बनवाया था।
> पलकेशिन-Iने हर्षवर्धन को हराकर परमेश्वरकी उपाधि धारण की थी। इसने 'दक्षिणापथेश्वर" की उपाधि भी धारण की थी।
> पल्ववंशी शासक नरसिंह वर्मन प्रयम ने पुलकेशिन 1I को लगभग 642 ई० में परास्त किया और उसकी राजधानी बादामी पर अधिकार कर लिया। संभवतः इसी युद्ध में पुलकेशिन-ILमारा गया। इसी विजय के बाद नरसिंहवर्मन ने 'वातापिकोड की उपाधि धारण की।
> ऐहोल अभिकेख का संबंध पुलकेशिन-II से है। (लेखक-रविकीर्ति)
> अजन्ता के एक गुफा में चित्र में फारसी दूत-मडल की स्वागत करते हुए पुर्केशिन II को दिखाया गया है।
> वातापी का निर्माणकर्त्ता की्तिवर्मन को माना जाता है।
मालवा को जीतने बाद विनयादित्य ने सकीतरपथनाथ की उपाधि धारण की।
> चोलों एवं पश्चिमी चालुक्य के बीच शांति स्थापित करने शालाभोग : किसी विद्यालय के में गोवा के कदम्ब शासक जयकेस प्रथम ने मध्यस्थ की रखरखाव के भूमि । भूमिका निभायी थी।
> विक्रम चोल अभाव एवं अकाल से ग्रस्त गरीब जनता से राजस्व वसूल कर चिदंबरम् मंदिर का विस्तार करवा रहा था।
> कलोतुंग-II ने चिदम्बरम् मंदिर में स्थित गोविन्दराज (विष्ण)
की मूर्त्तिं को समुद्र में फेंकवा दिया। कालान्तर में वैष्णव आचार्य रामानुजाचार्य ने उक्त मूर्त्ति का पुनर्धार किया और उसे तिरुपति के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित किया।
> चोल प्रशासन में भाग लेने वाले उच्च पदाधिकारियों को पेरुन्दरम् एवं निम्नश्रेणी के पदाधिकारियों को शेरुन्दरन कहा जाता था।

चोल काल में भूमि के प्रकार

वेल्लनवगाई : गैर ब्राह्मण किसान
ब्रह्मदेय : ब्राह्मणों को उपहार में
दी गई भूमि ।
शालाभोग : किसी विद्यालय के रखरखाव के भूमि ।
देवदान या तिरुनमटड्वकनी : मंदिर को उपहार में दी गई भूमि
पल्लिच्चंदम : जैन संस्थानों को दान दी गई भूमि ।

> सम्पूर्ण चोल साम्राज्य 6 प्रांतों में विभक्त था। प्रांत को मंडलम् कहा जाता था । मंडलम् कोट्टम्। में, कोट्टम नाडु में एवं नाडु कई कुर्रमों में विभक्त था ।
> नाडु की स्थानीय सभा को नाटूर एवं नगर की स्थानीय सभा को नगरतार कहा जाता था ।
> स्थानीय स्वशासन चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता थी ।
> उर सर्वसाधारण लोगों की समिति थी, जिसका कार्य होता था सार्वजनिक कल्याण के लिए तालाबों और बगीचों के निर्माण हेतु गाँव की भूमि का अधिग्रहण करना ।
> सभा या महासभा : यह मूलतः अग्रहारों और ब्राह्मण बस्तियों की सभा थी, जिसके सदस्यों को पेरुमक्कल कहा जाता था। यह सभा वरियम नाम की समितियों के द्वारा अपने कार्य को संचालित करती थी। सभा की बैठक गाँव में मंदिर के निकट वृक्ष के नीचे या तालाब के किनारे होती थी। व्यापारियों की सभा को नगरम कहते थे ।
> चोल काल में भूमिकर उपज का 1/3 भाग हुआ करता था।
> गाँव में कार्यसमिति की सदस्यता के लिए जो वेतनभोगी।
कर्मचारी रखे जाते थे, उन्हें मध्यस्थ कहते थे।
> ब्राह्मणों को दी गई करमुक्त भूमि को चतुर्वेदि मंगलम्ए वं दान दी गयी भूमि ब्रह्मदेय कहलाती थी ।
> चोल सेना का सबसे संगठित अंग था-पदाति सेना ।
> चोल काल में काशु सोने के सिक्के थे।
> तमिल कवियों में जयन्गोंदर प्रसिद्ध कवि था, जो कुलोतुँग प्रथम का राजकवि था। उसकी रचना है कलिंगतुपर्णि
> कंबन, औट्टक्कुट्टन और पुगलेंदि को तमिल साहित्य का त्रिरत्न कहा जाता है।
> पंप, पोन्न एवं रन्न कन्नड़ साहित्य के त्रिरत्न माने जाते हैं।
> पर्सी ब्राऊन ने तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर के विमान को भारतीय वास्तुकला का निकष माना है ।
> चोलकालीन नटराज प्रतिमा को चोल कला का सांस्कृतिक सार या निचोड़ कहा जाता है।
> शैव सन्त इसानशिव पंडित राजेन्द्र-1 के गुरु थे।
> चोलकाल (10वीं शताब्दी) का सबसे महत्त्वपूर्ण  बन्दरगाह कावेरीपट्टनम था ।
> बहुत बड़ा गाँव, जो एक इकाई के रूप में शासित किया जाता था. तनियर कहलाता था ।
> उत्तरमेरूर शिलालेख, जो सभा-संस्था का विस्तृत वर्णन उपस्थित करता है, परांतक प्रथम के शासनकाल से संबंधित है।
> चोलों की राजधानी कालक्रम के अनुसार थी-उरैयूर, तंजीड़, गंगैकोंड, चोलपुरम् एवं कांची ।
> चोल काल में सड़कों की देखभाल बगान समिति करती थी।
> चोलकाल में आम वस्तुओं के आदान-प्रदान का आधार धान था।
> चोल काल के विशाल व्यापारी-समूह निम्न थे-वलंजियार, नानादैसी एवं मनिग्रामम् ।
> विष्णु के उपासक अलवार एवं शिव के उपासक नयनार संत कहलाते थे।

यादव वश

> देवगिरि के यादव वंश की स्थापना भिल्लम पंचम ने की। इसकी राजधानी देवगिरि थी ।
> इस वंश का सबसे प्रतापी राजा सिंहण (1210-1246 ई०) था।
> इस वंश का अंतिम स्वतंत्र शासक रामचन्द्र था, जिसने अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर के सामने आत्मसमर्पण किया।

होयसल बंश

> द्वारा समुद्र के होयसल वंश की स्थापना विष्णुवर्धन ने की थी।
> होयसल वश यादव वश की एक शाखा थी।
> बेलूर में चेन्ना केशव मंदिर का निर्माण विष्णुवर्धन ने 1117 ई० में किया था।
> होयसल वश की आतिम शासक वीर बल्लाल तृतीय था, जिसे मलिक काफूर ने हराया था।
> होयसल वंश की राजधानी द्वार समूद्र (अधुनिक हलेविड) था।

कदम्ब बंश

कदम्ब वंश की स्थापना मयूर शर्मन ने की थी। कदम्ब वंश की राजधानी वनवासी था।

गंगवंश

गंगवंश संस्थापक बजहस्त पंचम था।
अभिलेखों के अनुसार गंगवंश के प्रथम शासक कोंकणी वर्मा था।
गंगों की प्रारंभिक राजधानी कुवलाल (कोलर) थी, जो बाद में तलकाड़ हो गयी।
'दत्तकसूत्र' पर टीका लिखने वाला गंग शासक माधव प्रथम था।

काकत्रीय वंश

> काकतीय वंश का संस्थापक बीटा प्रथम था, जिसने नलगोंडा (हैदराबाद) में एक छोटे से राज्य का गठन किया,  जिसकी राजधानी अंमकोण्ड थी ।
> इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक गणपति था । रुद्रमादेवी गणपति की वेटी थी, जिसने रुद्रदेव महाराज का नाम ग्रहण किया, जिसने 35 वर्ष तक शासन किया।
> गणपति ने अपनी राजधानी वारंगल में स्थानान्तरित कर ली थी।
> इस राजवंश का अंतिम शासक प्रताप रुद्र (1295-1323) था।

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