सर्वव्यापी
ब्रह्मांडीय चेतना का स्वरूप, मां ब्रह्मचारिणी के
रूप में भक्तों को आशीष देता है। ब्रह्म का अर्थ वह परम चेतना है, जिसका न तो कोई आदि है और न कोई अंत, जिसके पार कुछ भी नहीं है। नवरात्र के दूसरे दिन भक्त ध्यान
मग्न होकर परमसत्ता की दिव्य अनुभूति मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। मां के इस स्वरूप
की आराधना करने वालों की शक्तियां असीमित, अनंत
हो जाती हैं। फलस्वरूप
उसके समस्त दुख दूर होते हैं और वह सुखों को प्राप्त करता है। सत, चित्त, आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति कराना ही ब्रह्मचारिणी का
स्वभाव मां ब्रह्मचारिणी है। चंद्रमा के समान निर्मल, कांतिमय और भव्य रूप वाली, दो भुजाओं वाली ब्रह्म्मचारिणी कौमारी की पूजा करते हैं। शक्ति का स्थान योगियों ने 'स्वाधिष्ठान चक्र' में
देवी ब्रह्मचारिणी बताया
है। इनके एक हाथ में कमंडल तथा दूसरे में चंदन की माला रहती है। अपने भक्तों को मां ब्रह्मचारिणी प्रत्येक काम में सफलता देती
हैं। वे सन्मार्ग
से कभी नहीं हटते और जीवन के कठिन यह स्वरुप भक्तों संघर्षों में भी अपने कर्तव्य
का पालन, बिना विचलित हुए करते रहते हैं। इनका वाहन शिखर अर्थात पर्वत की चोटी को बताया गया है। मान्यता है
कि देवी दुर्गा का यह रूप
साधकों को अमोघ फल
प्रदान करता है। साधक को यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है। नवदुर्गाओं में द्वितीय देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
पूर्ण-ज्योर्तिमय है।
वे गहन तप में लीन
हैं। देवी का मुख दिव्य तेज से भरा है और भंगिमा शांत है। मुखमंडल पर विकट तपस्या के कारण अद्भुत तेज और अद्वितीय कांति का अनूठा संगम
है, जिससे तीनों लोक प्रकाशमान हो रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त मां
ब्रह्मचारिणी का व्रत करता है, वह कभी भी अपने जीवन में नहीं भटकता। अपने
मार्ग पर स्थिर रहता है और उसे जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
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