Tuesday, 3 March 2020

भारत में कैंसर जैसे बढ़ते बीमारियों के बढ़ते ख़तरे और उनके अनुवांशिक परिवर्तनों की पहचान

हर 10 में से एक भारतीय होगा कैंसर से पीड़ित

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक हर 15 में से एक पीड़ित की मौत की आशंका 2018 में 11.6 लाख मामले आए 7 लाख से ज्यादा की मौतसंयुक्त राष्ट्र। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट में 10 भारतीयों में से एक को अपने जीवनकाल में कैंसर होने और 15 में से एक की इस बीमारी से मौत होने की आशंका जताई गई है। कैंसर के पीड़ितों से संबंधित डब्ल्यूएचओ के 172 देशों की सूची में भारत का 155वां स्थान है। भारत में हर साल कैंसर के 11 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं। डब्ल्यूएचओ और उसके साथ काम करने वाली 'इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर' (आईएआरसी) ने दो रिपोर्ट जारी की हैं। एक रिपोर्ट बीमारी पर वैश्विक एजेंडा तय करने पर आधारित है और दूसरी रिपोर्ट इसके अनुसंधान एवं रोकथाम पर केन्द्रित है। वर्ल्ड कैंसर रिपोर्ट' के अनुसार भारत में 2018 में कैंसर के लगभग 11.6 लाख मामले सामनेआए और कैंसर के कारण 7,84,800 लोगों की मौत हो गई। रिपोर्ट के मुताबिक, 'हर 10 भारतीयों में से एक व्यक्ति के अपने जीवनकाल में कैंसर की चपेट में आने और 15 भारतीयों में से एक के इसके कारण जान गंवाने की आशंका है।' फिलहाल भारत में हर एक लाख लोगों पर 70.23. लोग कैंसर से प्रभावित हैं। 



42% पुरुष, 18% महिलाएं तंबाकू के कारण गंवा चुके हैं जान

अनुमान के मुताबिक भारत में 42% पुरुष और 18% महिलाएं तंबाकू के सेवन के कारण कैंसर का शिकार हो जान गंवा चुके हैं। 1990 के आंकड़ों से तुलना करें तो भारत में फिलहाल प्रोस्टेट कैंसर के मामलों में 22 फीसदी वृद्धि हुई है।

गरीब देशों में बढ रहा केसर

डब्ल्यूएचओ के साथ काम करने वाली संस्था इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर की निदेशक एलिसबेटे वीडरपास कहती हैं कि उच्च आय वाले देशों में कैंसर का इलाज होने से वर्ष 2000 से 2015 के बीच इससे मरने वालों की संख्या में 20% की कमी आई है गरीब देशों में यह दर सिर्फ 5% है। रिपोर्ट कहती है कि कैंसर को हमेशा से अमीर देशों की बीमारी कहा जाता है लेकिन ऐसा नहीं है। अमेरिका अच्छा उदाहरण: अमेरिका के तकरीबन सभी राज्यों में स्कूली बच्चों के लिए हेपेटाइटिस ए और बी के टीके अनिवार्य हैं।

अल्जाइमर का खतरा काम करने वाले अनुवांशिक परिवर्तनों की पहचान

10, 000 लोगों के डीएनए का किया विश्लेषण

शोधकर्ताओं ने अल्जाइमर रोग से रक्षा करने वाले आनुवंशिक परिवर्तनों (जेनेटिक वेरिएंट्स) की पहचान की है। ताजा अध्ययन से पता चला है कि प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले ये परिवर्तन टायरोसिन फॉस्फेटेस नामक प्रोटीन की क्रियाशीलता घटा देते हैं। यह प्रोटीन 'पीआई3के/ एकेटी/ जीएसके-3बी' नामक कोशिका संकेतन (सेल सिग्नलिंग) मार्ग की गतिविधि को बाधित करने के लिए जाना जाता है। सेल सिग्नलिंग मार्ग कोशिकाओं के अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। वैज्ञानिकों ने 10,000 लोगों के डीएनए का विश्लेषण किया| जर्नल एनल्स जेनेटिक्स में प्रकाशित ताजा शोध में टायरोसिन फॉस्फेटेस प्रोटीनों के कार्यों को रोककर पहली बार मानव ऑफ ह्यूमन में अल्जाइमर का जोखिम कम करने का प्रभाव देखा गया है। इससे पहले चूहों पर हुए शोध ने इस ओर इशारा किया था। प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर डेविड क्टिस का कहना है कि ताजा नतीजे काफी उत्साहित करने वाले हैं। इनसे पता चला है कि जब प्राकृतिक आनुवांशिक परिवर्तन टायरोसिन फॉर्फेटेस प्रोटीनों की गतिविधि को कम करते हैं तो अजाइमर का खतरा कम हो जाता है। इससे संकेत मिलते हैं कि जिन दवाओं से यह प्रभाव पैदा होता है, वे भी बचावकारी हो सकती हैं। 



प्रभावी दवा बनाने में भी मिलेगी मदद

प्रोफेसर कर्टिस का कहना है कि लोगों में इस प्राकृतिक प्रयोग से अल्जाइमर के विकसित होने के बारे में पता चला है। हमने देखा कि जिन लोगों में खास आनुवांशिक परिवर्तन आए, उनमें अल्जाइमर होने का खतरा कम पाया गया। इस अध्ययन से वैज्ञानिकों को अल्जाइमर की प्रभावी दवा बनाने में भी मदद मिलेगी। हालांकि, जिन लोगों 'पीआई3के' सेल सिग्नलिंग के लिए जीन को नुकसान पहुंचाने वाले आनुवांशिक परिवर्तन होते हैं तो उनमें अल्जाइमर का खतरा बढ़ जाता है।

महिलाओं में टाइप टू डायबिटीज का खतरा बढ़ाता है टेस्टोस्टेरॉन

महिलाओं और पुरुषों पर होता है अलग-अलग असर

टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का ऊंचा स्तर महिलाओं में टाइप 2 डायबिटीज के खतरे को बढ़ाता है, लेकिन पुरुषों में कम करता है। ब्रिटेन में हुए एक ताजा शोध के मुताबिक यह हार्मोन महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर और पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को बढ़ाता है। शोध में यह भी पता चला कि  टेस्टोस्टेरॉन महिलाओं में पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) का कारण भी हो सकता है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने 4.25 लाख से ज्यादा लोगों पर अध्ययन किया जिसमें पता चला कि आनुवांशिक रूप से टेस्टोस्टेरॉन के ऊंचे स्तर वाली महिलाओं को टाइप 2 डायबिटीज होने की आशंका 37 प्रतिशत ज्यादा होती है। वहीं, पुरुषों के शरीर में इस हार्मोन का ऊंचा स्तर टाइप 2 डायबिटीज के खतरे को 14% कम करता है। टेस्टोस्टेरॉन पुरुष और महिला, दोनों के शरीर में मौजूद होता है। इसके ऊंचे स्तर का दोनों पर अलग-अलग असर होता है।


पीसीओएस के नतीजे से शोधकर्ता भी हैरान

शोधकर्ताओं के लिए भी सबसे चौंकाने वाला नतीजा पीसीओएस से संबंधित है। अब पहले के शोधों में बताया गया है कि महिलाओं को पीसीओएस होने पर शरीर में टेस्टोस्टेरॉन का स्तर बढ़ जाता है, नए शोध में बताया गया है कि टेस्टोस्टेरॉन का ऊंचा स्तर हो तो पीसीओएस होने की आशंका 51% तक ज्यादा है। शोध के सह-लेखक जॉन पेरी ने बताया नतीजे से आश्चर्यचकित हैं।

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