Saturday 11 April 2020

भारत का इतिहास :- पुष्यभूति वंश या वर्द्धन वंश

पुष्यभूति वंश या वर्द्धन वंश


> गुप्त वंश के पतन के बाद जिन नये राजवंशों का उद्भव हुआ, उनमें मैत्रक, मौखरि, पुष्यभूति, परवर्ती गुप्त और गौड़ प्रमुख है। इन राजवंशों में पुष्यभूति वंश के शासकों ने सबसे विशाल साम्राज्य स्थापित किया।
> पुष्यभूति वंश के संस्थापक पुष्यभूति था। इनकी राजधानी थानेश्वर (हरियाणा प्रांत के करनाल जिले मे स्थित व्तमान यानेसर नामक स्थान) थी।
> प्रभाकरव्द्धन इस वश की स्वतंत्रता का जन्मदाता था तथा प्रथम प्रभावशाली शासक था जिसने परमभट्टारक और महाराजाधिराज जैसी सम्मानजनक उपाधियाँ धारण की।
> प्रभाकरवर्द्धन की पत्नी यशोमती से दो पुत्र -राज्यवत्द्धन और हर्षवर्द्धन तथा एक कन्या राज्य श्री उत्पन्न हुई। राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि राजा ग्रहवर्मा के साथ हुआ।
> मालवा के शासक देवगुप्त ने ग्रहवर्मा की हत्या कर दी और राज्यश्री को बदी बनाकर कारागार में डाल दिया।
> राज्यवर्द्धन ने देवगुप्त को मार डाला, परंतु देवगुप्त के मित्र गौड़ नरेश शशांक ने धोखा देकर राज्यव्द्धन की हत्या कर दी।
नोट : शशांक शैव धर्म का अनुयायी था। इसने बोधिवृक्ष (वोधगया) को कटवा दिया।

> राज्यवर्द्धन की मृत्यु के बाद 606 ई० में 16 वर्ष की अवस्था में हर्षपवर्द्धन थानेश्वर की गद्दी पर बैठा। हर्ष को शिलादित्य के नाम से भी जाना जाता था। इसने परमभट्टारक नरेश की उपाधि धारण की थी।
> हर्ष ने शशांक को पराजित करके कन्नीज पर अधिकार कर लिया तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।
> हर्ष और पुलकेशिन-II के बीच नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ जिसमें हर्ष की पराजय हुई।
> चीनी यात्री हुएनसाँग हर्षवर्द्धन के शासन काल में भारत आया।

नोट : हुएनसौँग को यात्रियों में राजकुमार, नीति का पंडित एवं वर्तमान शाक्यमूनि कहा जाता है। वह नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने एवं बौद्ध ग्रंथ संग्रह करने के उद्देश्य से भारत आया था।

> हर्ष 641 ई० में अपने दूत चीन भेजे तथा 643 ई० एवं 645 ई० में दो चीनी दूत उसके दरबार में आए।
> हर्ष ने कश्मीर के शासक से बुद्ध के दंत अवशेष वलपूर्वक प्राप्त किए।
> हर्ष के पूर्वज भगवान शिव और सूर्य के अनन्य उपासक थे। प्रारंभ में हर्ष भी अपने कुल देवता शिव का परम भक्त था। चीनी यात्री हुएनसाँग से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को राज्यश्रय प्रदान किया तथा वह पूर्ण बौद्ध बन गया
> हर्ष के समय में नालंदा महाविहार महायान यौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रधान केंद्र था।
> हर्ष के समय में प्रयाग में प्रति पाँचवें वर्ष एक समारोह आयोजित किया जाता था जिसे महामोक्षपरिषद कहा जाता था हुएनसॉँग स्वयं 6ठे समारोह में सम्मलित हुआ।
> बाणभट्ट हर्प के दरबारी कवि थे। उन्होंने हर्षचरित एवं कादप्वरी की रचना की।
> प्रियदर्शिका, रत्नावली तथा नागानन्द नामक तीन संस्कृत नाटक ग्रंथों की रचना हर्ष ने की थी। कहा जाता है कि धावक नामक कवि ने हर्ष से पुरस्कार लेकर उसके नाम से ये तीनों नाटक लिख दिए।
> हर्ष को भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट कहा गया है, लेकिन वह न तो कट्टर हिन्दू था और न ही सारे देश का शासक ही।
> हर्ष के अधीनस्थ शासक महाराज अथवा महासामन्त कहे जाते थे।
> हर्ष के मंत्रीपरिषद के मंत्री को सचिव या आमात्य कहा जाता था।
> प्रशासन की सुविधा के लिए हर्ष का सम्राज्य कई प्रांतों में विभाजित था। प्रांत को भूक्ति कहा जाता था। प्रत्येक भूक्ति का शासक राजस्थानीय उपरिक अथवा राष्ट्रीय कहलाता था।

नोट: हर्षचरित में प्रान्तीय शासक के लिए 'लोकपाल शब्द आया है।

> भूक्ति का विभाजन जिलों में हुआ था। जिले की संज्ञा थी विषय जिसका प्रधान विषयपती होता था। विषय के अन्तर्गत कई पाठक (आधुनिक तहसील) होते थे।
> ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई थी। ग्राम शासन का प्रधान ग्रामाक्षपटलिककहा जाता था
> पुलिस कर्मियों को चाट या भाट कहा गया है। दण्डपाशिक तथा दाण्डिक पुलिस विभाग के अधिकारी होते थे।
> अश्व सेना के अधिकारियों को बृहदेश्वर, पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत या महाबलाधिकृत कहा जाता था
> हर्षचरित में सिंचाई के साधन के रूप में तुलायंत्र (जलपंप) का उल्लेख मिलता है।
> हर्ष के समय मथुरा सूती वस्त्रों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध था।

हर्षचरित के अनुसार हर्ष की मंत्रीपरिषद

भण्डि प्रधान सचिव
सिंहनाद प्रधान सेनापति
कुंतक अश्व सेना का प्रधान
स्कंदगुप्त गज सेना का प्रमुख

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