Friday 10 April 2020

भारत का इतिहास :- भारत में शको का इतिहास

भारत में शको का इतिहास


> यूनानियों के बाद शक आए। शकों की पाँच शाखाएँ यी और हर शाखा की राजधानी भारत और अफगानिस्तान में अलग-अलग भागों में थी।
> पहली शाखा ने अफगानिस्तान, दूसरी शाखा ने पंजाब (राजधानी-तक्षशिला), तीसरी शाखा ने मथुरा, चौथी शाखा ने पश्चिमी भारत एवं पाँचवी शाखा ने ऊपरी दक्कन पर प्रभुत्व
स्थापित किया।
> शक मूलतः मध्य एशिया के निवासी थे और चरागाह की खोज में भारत आए।
> 58 ई० पू० में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकों को पराजित करके बाहर खदेड़ दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
> शकों पर विजय के उपलक्ष्य में 57 ई० पू० से एक नया संवत् बिक्वम संवत् के नाम से प्रारंभ हुआ। उसी समय से 'विक्रमादित्य' एक लोकप्रिय उपाधि बन गयी, जिसकी संख्या
भारतीय इतिहास में 14 तक पहुँच गयी। गुप्त सम्राट् चन्द्रगुप्त द्वितीय सबसे अधिक विख्यात विक्रमादित्य था।
> शकों की अन्य शाखाओं की तुलना में दक्षिण भारत में प्रभुत्व स्थापित करनेवाली शाखा ने सबसे लम्बे अरसे तक शासन किया। (लगभग चार शताब्दी तक)
> गुजरात में चल रहे समुद्री व्यापार से यह शाखा काफी लाभान्वित हुई और भारी संख्या में चाँदी के सिक्के जारी किए।
> शकों का सबसे प्रतापी शासक रुद्रदामन प्रथम था, जिसका शासन (130-150 ई०) गुजरात के बड़े भाग पर था। इसने काठियावाड़ की अर्धशुष्क सुदर्शन झील (मौर्यों द्वारा निर्मित)
का जीर्णोद्धार किया।
> रुद्रदामन संस्कृत का बड़ा प्रेमी था। उसने ही सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत भाषा में लम्बा अभिलेख (गिरनार अभिलेख) जारी किया, इसके पहले के सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में रचित थे। भारत में शक राजा अपने को क्षत्रप कहते थे।


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