Friday 10 April 2020

भारत का इतिहास :- भारत में कुषाण का इतिहास


भारत में कुषाण का इतिहास

> परहल्व के बाद कुषाण आए, जो यूची एवं तोखरी भी कहलाते हैं।
> यूची नामक एक कबीला पाँच कुलों में बैट गया था, उन्हीं में एक कुल के थे, कुषाण ।
> कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस था । इस वंश का सबसे प्रतापी राजा कनिष्क था। इनकी राजधानी पुरुषपुर या पेशावर थी। कुषाणों की द्वितीय राजधानी मथुरा थी।
> कनिष्क ने 78 ई० (गह्दी पर बैठने के समय) में एक संवत् चलाया, जो शक-संवत् कहलाता है जिसे भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।
> बौद्ध धर्म की चौथी बौद्ध संगीति कनिष्क के शासनकाल में कुण्डलवन ( कश्मीर ) में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई।
> कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का अनुयायी था।
> आरम्भिक कुषाण शासकों ने भारी संख्या में स्वर्ण मुद्राएँ जारी की, जिनकी शुद्धता गुप्त काल की स्वर्ण मुद्राओं से उत्कृष्ट है।
> कनिष्क का राजवैद्य आयुर्वेद का विख्यात विद्वान चरक था, जिसने चरकसंहिता की रचना की।
> महाविभाष सूत्र के रचनाकार वसुमित्र हैं। इसे ही बौद्धधर्म का विश्वकोष कहा जाता है।
> कनिष्क के राजकवि अश्वघोष ने बौद्धों का रामायण 'बुद्धचरित' की रचना की।
> वसुमित्र, पाश्र्व, नागार्जुन, महाचेत
> भारत का आइन्सटीन नागार्जुन को कहा जाता है। इनकी पुस्तक माध्यमिक सूत्र (इस पुस्तक में नागार्जुन ने सापेक्षता का सिद्धान्त प्रस्तुत किया था ) है।
> कनिष्क की मृत्यु 102 ई० में हो गयी कुषाण वंश का अंतिम शासक वासुदेव या ।
> गांधार शैली एवं मथुरा शैली का विकास कनिष्क के शासन-काल में हुआ था ।
> रेशम मार्ग पर नियंत्रण रखने वाले शासकों में सबसे प्रसिद्ध कुषाण थे।

नोट: रेशम बनाने की तकनीक का आविष्कार सबसे पहले चीन में हुआ था।

अन्य ब्लॉग लिंक :- भारत का इतिहास :- भारत में शको का इतिहास

No comments:

Post a Comment