Monday 6 April 2020

भारत का इतिहास :- सिन्धु सभ्यता

सिन्धु सभ्यता

सिन्धु काल में विदेशी व्यापार :-

आयातित वस्तुएँ प्रदेश
तांबा खेतड़ी, बलूचिस्तान, ओमान
चांदी अफगानिस्तान, ईरान
सोना कर्नाटक, अफगानिस्तान, ईरान
टिन अफगानिस्तान, ईरान
गोमेद सौराष्ट्र
लाजवर्द मेसोपोटामिया
सीसा  ईरान



> रेडियोकार्बन C4 जैसी नवीन विश्लेषण-पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई० पू० से 1750 ई० पूर्व मानी गयी है।
> सिन्धु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की।
> सिन्धु सभ्यता को प्राक्ऐतिहासिक (Protohistoric) अथवा कास्य (Bronze) युग में रखा जा सकता है। इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ एवं भूमध्यसारीगय थे ।
> सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर (जिला मेरठ, उत्तर प्रदेश), उत्तरी पुरास्थल माँदा (जिला अखनूर जम्मू कश्मीर) तथा दक्षिणी पुरास्थल दाइमाबाद (जिला अहमद नगर, महाराष्ट्र)
> सिन्धु सभ्यता या सैधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी। सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही बड़े नगर की संज्ञा दी गयी है, ये हैं मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गणवारीवाला, धौलावीरा राखीगढ़ी एवं कालीबंगन ।
> स्वतंत्रता-प्राप्ति पश्चात् हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं ।
> लोथल एवं सुतकोतदा-सिन्धु सभ्यता का बन्दरगाह था।
> जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग का साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है।
> मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्नागार संभवतः सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।
> मोहनजोदड़ो से प्राप्त बृहत् स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है, जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड 11-88 मीटर लम्बा, 7-01 मीटर चौड़ा एवं 2-43 मीटर गहरा है ।
> अग्निकुण्ड लोथल एवं कालीबंगन से प्राप्त हुए है।
> मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले देवता (पशुपति नाथ) की मूर्त्ति मिली है। उनके चारों ओर हाथी, गैंडा, चीता एवं भैसा विराजमान है।
> मोहनजोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य मूर्त्ति मिली है।
> हड़प्पा की मोहरों पर सबसे अधिक एक श्ृंगी पशु का अंकन मिलता है।
> मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चन्हूदड़ो में मिले है।
> सिन्धु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है। यह लिपी दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी। जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता था तो पहली पंक्ति दाईं से बाईं और दूसरी
बाईं से दाईं ओर लिखी जाती थी।
> सिन्धु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई ।
> घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे। केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे ।
> सिन्धु सभ्यता में मुख्य फसल थी-गेहूँ और जौ ।
> सैंधव वासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे ।
> रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है। चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए है।
> सुरकोतदा, कालीबंगन एवं लोथल से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर मिले हैं।
> तौल की इकाई संभवतः 16 के अनुपात में थी ।
> सैधव सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैंसागाड़ी का उपयोग करते थे ।
> मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्द का अभिप्राय सिन्धु सभ्यता से ही है।
> संभवतः हड़प्पा संस्कृति का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था।
> पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानी कहा है।
> सिन्धु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे।
> वृक्ष-पूजा एवं शिव-पूजा के प्रचलन के साक्ष्य भी सिन्धु सभ्यता से मिलते हैं।
> स्वस्तिक चिह्न संभवतः हडप्पा सभ्यता की देन है। इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है। सिन्धु धाटी के नगरों में किसी भी मंदिर, के अवशेष नहीं मिले हैं।
> सिन्धु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी ।
> पशुओं में कुबड़ वाला साँड़, इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था ।
> स्त्री मृण्मूर्तियाँ (मिट्टी की मूर्तियाँ) अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैधव समाज मातृसत्तात्मक था।
> सैंधववासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे ।
> मनोरंजन के लिए सैंधववासी मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु-पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ और पासा खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे ।
> सिन्धु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किए हुए लाल मिट्टी के बत्त्तन बनाते थे ।
> सिन्धु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे ।
> कालीबंगन एक मात्र हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर (सामान्य लोगों के रहने हेतु) भी किले से घिरा हुआ था।
> पर्दा प्रथा एवं वेश्यावृत्ति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी
> शवों को जलाने एवं गाड़ने यानी दोनों प्रथाएँ प्रचलित थीं । हड़प्पा में शवो को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी । लोथल एवं कालीबंगा में युग्म समाधियाँ मिली है।
> सैंधव सभ्यता के विनाश का संभवतः सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था ।
> आग में पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है।

सैधव सभ्यता के प्रमुख स्थल : नदी, उत्खननकर्ता एवं वर्तमान स्थिति

प्रमुख स्थलनदीउत्खननकर्तावर्षस्थिति
हड़प्पारावीदयाराम साहनी एवं1921पाकिस्तान का मोंटगोमरी जिला 
मोहनजोदड़ो सिंधुराखालदास बनर्जी1922पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला 
चन्हुदडो सिंधु गोपाल मजूमदार1931सिंधप्रांत (पाकिस्तान )
कालीबंगनघग्घरबीo बीओ लाल,  एवं  वीo केo थापर1953राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला 
कोटदीजी सिंधुफजल अहमद1953सिंध प्रान्त का खैरपुर स्थान 
रंगपुरमादर रंगनाथ राव1953-54गुजरात का काठियावाड़ जिला 
रोपड़सतलजयज्ञदत्त शर्मा1953-56पंजाब का रोपड़ जिला 
लोथलभोगवारंगनाथ राव1955 एवं 1962गुजरात का अहमदाबाद जिला 
आलमगीरपुरहिन्डनयज्ञदत्त शर्मा1958उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला 
सुतकांगेडोरदशकऑरेंज स्टाइल, जार्ज डेल्स1927 एवं 1962पाकिस्तान के मकरान में समुद्र तट के किनारे 
बनमाली रंगोईरविन्द्र सिंह विष्ट1974हरियाणा का हिसार जिला 
धौलावीराधौलावीरारविन्द्र सिंह विष्ट1990-91गुजरात के कच्छ जिला

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