"शैलपुत्री स्वरूप में मैं करती हूं जीवों की रक्षा
" मेरे नौ विग्रह रूपों में पहला स्वरूप 'शैलपुत्रीं' का है। नवरात्र के प्रथम दिन भक्त मेरे इसी स्वरूप की आराधना करते हैं। शैलराज हिमालय राज की कन्या होने के कारण मेरा नाम शैलपुत्री पड़ा। मेरा यह स्वरूप लावण्यमयी एवं अतिरूपवान है । दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प लिए मैं अपने वाहन वृषभ पर विराजमान रहती हूँ। इसलिए मुझे लोग 'वृषारूढा देवी' के नाम से भी जानते हैं। मेरे हाथ में सुशोभित कमल पुष्प, अविचल ज्ञान और शांति का प्रतीक है। भगवान शंकर की भाँति मेरा भी निवास पर्वतों पर है। प्रत्येक प्राणी में मेरा स्थान नाभि चक्र से नीचे स्थित भूलाधार चक्र में है। यही वह स्थान है, जहां मैं 'कुंडलिनी' के रूप में रहती हूं । मेरी उपासना में योगी एवं साधक अपने मन को 'भूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं। इसी स्थान से योग साधना का प्रारम्भ होता है। मैं साधक को साधना में लीन होने की शक्ति, साहस एवं बल प्रदान करती हूं, साथ ही आरोग्य का वरदान भी देती हूं। मैं समस्त बन्य जीव-जंतुओं पर अपनी कृपा बरसानी हूं। जो भी मेरी पूजा उपासना श्रद्धा भक्ति के साथ करता है, मैं उन्हें अभयदान देती हूं। मैं अपने मक्तों को आकस्मिक आपदाओं से भी मुक्त रखती हूं। उन्हें धन-वैभव मान्-सम्मान् और प्रतिष्ठा दिलाती हूँ।
पूजा में सफेद और लाल रंग
नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री को सफेद या लाल रंग के पुष्प अर्पित करें। गाय के दूध से बने पकवान एवं मिष्ठान्न का भोग लगाने से यह मां प्रसन्न होती हैं तथा भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। साथ ही भक्त के घर की दारिद्रता को दूर करके उसके घर के सभी सदस्यों को रोग मुक्त करती हैं। इनको प्रसन्न करने के लिए एक कन्या को कंघा, हेयर ब्रश, हेयर क्रीम या बैंड उपहार में दें। पिपरमिंट युक्त मीठे मसाले का पान, अनार या गुड़ से बने पकवान इस देवी को अर्पण किया जा सकता है। तत्पश्चात् सरपरिवार आरती करें।
आरती
शैलपुत्री मां बैल असवार।
करें देवता जय जयकार।।
शिव शंकर की प्रिय भवानी।
तेरी महिमा किसी ने न जानी।।
पार्वती तू उमा कहलावे।
जो तुझे सुमरै सो सुख पावे!
ऋद्धि सिद्धि परवान करे तू?
दया करे धनवान करे तू।।
सोमवार को शिव संग प्यारी।
आरती तेरी जिसने उतारी।।
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुख तकलीफ मिला दो।।
घी का सुंदर दीप जला के ।
गोला गरी का भोग लगा के ।।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाए।
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।।
जय गिरिराज किशोरी अंबे।
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।।
मनोकाप्रता पूर्ण कर दो।
भक्त सदा सुख संपनति भर दो।।
मंत्र
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
ब्रह्मचारिणी रूप में विकसित करती हूं स्मरण शक्ति
"नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में मेरी पूजा होती है। सत, चित्त, आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति कराना ही मेरा स्वभाव है। मेरी पूजा करने से ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति होती है।
"ध्वल वस्त्र, दाएं हाथ में अष्टदल की जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल लिए मैं हूं ब्रह्मचारिणी अर्थात् तप का आचरण करने वाली। मेरी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है। सत, चित्त, आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति कराना ही। मेरा स्वभाव है। मेरी आभा पूर्ण चंद्रमा के समान निर्मल, कांतिमय है।
मेरी शक्ति का स्थान 'स्वाधिष्ठान चक्र' में है। मेरे एक हाथ में कमंडल तथा दूसरे में जप की माला रहती है।
नवरात्रि के दूसरे दिन् भक्त मेरे इसी विग्रह की पूजा-अर्चना करते हैं। मैं अपने भक्तों को उनके प्रत्येक कार्य में सफलता प्रदान करती हूँ। जो भी साधक या भक्त मेरी आराधना भक्तिभाव से करता है, वह कभी भी अपने जीवन में नहीं भटकता। यानी मेरे उपासक सन्मार्ग से कभी नहीं हटते और जीवन के कठिन संघर्षों में भी अपने कर्तव्य का पालन बिना विचलित हुए करते रहते हैं। मेरे इस रूप के पूजन से दीरছयु पराप्त की जाती है। मेरी पूजा - अर्चना करने से मनोकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।
माता को चढ़ाएं मिश्री
मा ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल के फूल बेहद पसंद हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन इन्हीं पुष्पों को अर्पित किया जाता है तथा चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग लगाया जाता है। प्रसाद भेंट करने और आचमन के पश्चात् पान-सुपारी भेंटकर प्रदक्षिणा करें। इसके बाद घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें। इनकी प्रसन्नता के लिए खुशबूदार तेल की शीशी कन्याओं को दें।
अंत में क्षमा प्रार्थना करें-
'आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥
मंत्र
दधना कर पद्याभ्यांक्षमाला कमण्डलम
देवी प्रसीदमयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥
आरती
जय अंबे बहमचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता ।।
म। जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।।
ब्रह्म मंत्र है जाप तुम्हाराह
जिसको जपे सरल संसार ।
जय गायत्री बेद की माता ।
जो जन जिस विन तुम्हें ध्याता॥
कमी कोई रहने ना पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने ॥
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्रक्षा की माला ले कर
जये जी मंत्र श्रद्धा दे कर?
आलस छोड़ करे गुणगाना ।।
मां तुम सको सुख पहुचाना ।
ब्रह्मचारिणी तेरी नाम॥
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे बरणीं का पुनारी ॥
रखना लान मैरी महतारी।
"चंद्रघंटा रू में मैं प्रदान करती हूं आरोग्य-संपदा
"मेरे तीसरे शक्ति-विध्रह का नाम 'चंद्रधंटा' है। मेरी पूजा-अर्चना भक्त नवरात्रि के तीसरे दिन करते हैं। मेरे स्वरूप में मेरा रंग सोने के समान चमकीला और तेजस्वी है। मेरे मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धवंद्र है, इसी कारण मेरा नाम चंद्रघंटा पड़ा । मेरे इस रूप में मेरे दस हाथ हैं, जिनमें एक हाथ में कमल का फूल, एक में कमंडल, एक में त्रिशूल, एक में गदा, एक में तलवार, एक में धनुष में बाण हैं। मेरा एक हथ हृदय पर, एक हाथ आशीर्वाद मुद्रा में और एक हाथ अभय मुद्रा में रहता है। मेरे गले में सफेद फूलों की माला रहती है और भेरा वाहन बाघ है। देहधाारियों में मेरे इस रूप का स्थान 'मणिपुर चक्र' है। साधक मेरा आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए 'मणिपुर चक्र' में अपना ध्यान लगाते हैं। मेरी कृपा से श्रद्धालुओं को अलौकिक क्स्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और दिव्य ध्वनियां सुनाई पड़ती हैं। मेरा यह स्वरूप दानव, दैत्य, राक्षसों को कंपाने वाला तथा मेरी प्रचंड ध्वनि उनकी हिम्मत पस्त कर देने वाली होती है। जहां मेरी घंटे की ध्वनि बुरी शक्तियों को भगाने पर मजबूर करती है, वहीं साधकों और भक्तों को मेरा स्वरूप सौम्य, शांत और भव्य दिखाई देता है।
घंटे की ध्वनि के साथ मां की आरती
माँ के इस स्वरूप की पूजा करने से घर और मन में शांति आती है। साथ ही परिवार का कल्याण होता है। इस दिन मां को दूध या इससे बनी चीजें अर्पित करनी चाहिए। इससे हर तरह के दुखों से मुक्ति मिलती है। मां को सफेद फूलों के साथ-साथ लाल फूल भी चढ़ाए जा सकते हैं। गुड़ और लाल सेब मां को बहुत पसंद है। चंद्रघंटा मां की आरती के समय घंटा बजाने का भी विधान है। इनकी प्रसन्नता हेतु कन्याओं को आईना, रोली, खिलौना आदि भेंट दें।
मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैयुता।
प्रसादं तनुते मद्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
आरती
जय मां चंद्र्ंघंटा सुख धाम ।
पूर्ण कीजो मेरे काम ।। चंद्र
समाज तू शीतल दाती ।
चंद्र तेज किरणों में समाती॥
क्रोध को शांत बनानेवाली ।।
मीठे बोल सिखानेवाली ॥
म् की मालक मन भाती हो ।
चंद्रघंटा तुम वरदाती हो ।।
सुंदर भाव को लानेवाली ।
हर संकट में बचानेवाली।॥
हर बुधवार जो तुझे ध्याए ।
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाए ॥
मूर्ति चंद्र आकार बनाए ।
सन्मुख शी की जोत जलाए ॥
शीश झुका कहे मन की बाता ।
पूर्ण आस करो जगतदाता ।
कांचीपुर स्थान तुम्हाय ।
करनाटिका में मान तुम्हारा ॥।
नाम तेरा रटू महारानी ।
भक्त की रक्षा करो भवानी ।।
"कूष्मांडा के स्वरूप में बढ़ाती हूं यश-आयु
मेरी पूजा-अर्चना से प्राणी सभी वायुविकार जनित दोषों से मुक्त हो जाता है। भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य दैहिक, दैविक और भौतिक त्रिविध तापों से मुक्त होता है।
मेरा चौथा स्वरूप कूष्मांडा का है त्था नवरात्रि के चौथे दिन भक्त मेरे इसी रूप की पूजा करते है। जब सुष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों और अंधकार-ही-अंधकार था, तब मेनें महाशून्य में अपने मंद हास से उजाला करते हुए 'अंड' का उत्पत्ति की, जो कि बीज रूप में ब्रह्म तत्व के मिलने से ब्रह्मांड बना। यही मेरा अजन्मा और आयशक्ति का रूप है। जीवों में मेरा स्थान अनाहत चक्र' में माना गया है। नवरात्रि के चौथे दिन योगीजन इसी चक्र में अपना ध्यान लगाते हैं। मेरा निवासस्थान सूर्य लोक में है। उस लोक में निवास करने की क्षमना और शक्ति केवल मुझ में है। मेरे स्वरूप की कांति और तेज मंडल भी सूर्य के समान् ही अतुलनीय है। मेरा तेज और प्रकाश दसों दिशाओं में और ब्रह्मांड के चराचर में व्याप्त है। मैं अध्टभुजा हूं, मेरे सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमुत कलश, चक्र तथा गदा है। जबकि आठवें हाथ में सर्वसिद्धि और सर्वनिधि देने वाली जप माला है। मेर वाहन ' बाघ है। मेरी उपासना से जटिल से जटिल रोगों से मुक्ति मिलती है, सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, भक्तों के समस्त रोग-शौोक नष्ट हो जाते हैं।
मां कूष्मांडा को चढ़ाएं लाल गुलाब
नवरात्रि के चौथे दिन अत्यंत पवित्र और शांत मन से मां कूष्मांडा की उपासना संपूर्ण विधि-विधान से करनी चाहिए। कहा जाता है कि मा कूष्माडा लाल गुलाब चढ़ाने पर अति प्रसन्न होती हैं। रोगों से निजात, दीर्घजीवन, प्रसिद्धि व शोहरत पाने के लिए माता को मालपुए का भोग लगाए। इस उपाय से बुद्धि भी कुशाग्र होती है। तत्पश्चात् इस प्रसाद को दान करें तथा स्वयं भी ग्रहण करें। इस दिन कन्याओं को मिठाई, कोल्ड क्रीम आदि भेंट करें। देवी कूष्मांडा की पूजा करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करं।
मंत्र
सुरा संपूर्ण कलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कूंष्मांडा शुभदास्तु में ।
आरती
कुष्मांड जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी ।॥
पिगला ज्यालामुखी निराली।
शाकंबरी मां भोली भाली ॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा |
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा।॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुंचती हो मो अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा।।
मां के मन में ममता भारी।
क्यों न सुनेगी अरज हमारी ।।
तेरे दर पर किया है डेरा ।
दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो।।
तेरा दास तुझे ही थ्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए
स्कन्दमाता स्वरूप में करती हूं मनोकामनाओं की पूर्ति
"मैं हूं स्कन्दमाता। यह मेरा पांचवां विग्रह स्वरूप है। देव सेनापति बनकर तारकासुर का वध करने वाले तथा मयूर (मोर) को वाहन रूप में अपनाने वाले स्कून्द की माता होने के कारण ही मुझे 'स्कन्दमाता के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के पांचवें दिन मेरे इसी रूप की पूजा अर्चना की जाती है। योगीजन इस दिन पुष्कल चक्र या विशुद्ध चक्र में अपना मन एकाग्र करते हैं। यही चक्र प्राणियों में मेरा स्थान है। मेरा विग्रह स्वरूप चार भुजाओं वाला है। मैंने इस रूप में अपनी गोद में भगवान स्कन्द को बैठा रखा है। दाहिनी ओर की नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प वरण किया हुए है, जबकि बाई ओर की ऊपर वाली भुजा से मैं भक्तों को आशीर्वाद और वर प्रदान करती हूं। नीचे वाली भुजा कमल पुष्प है। मेरा वर्ण पूरी तरह निर्मल कांति वाला सफेद है और मैं कमलासन पर विराजती हूँ। वाहन के रूप में मैंने सिंह को अपनाया है। मेरी उपासना से साधक को मृत्यु लोक में ही परम शांति और सुख मिलता है। उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं और वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर बढ़ता है, उसकी कोई लौकिक कामना शेष नहीं रहती।
सुख-शांति के लिए स्कन्दमाता की पूजा
स्कन्दमाता की साधना का संबंध व्यक्ति की सेहत, बुद्धिमत्ता, चेतना, तंत्रिका-तंत्र और रोगमुक्ति से है। नवरात्रि के पांचवें दिन भक्तों को केले का भोग लगाना चाहिए या फिर इसे प्रसाद के रूप में दान करना चाहिए। इससे परिवार में सुख-शांति आती है। इस मां की साधना से असाध्य रोगों का निवारण होता है और गृहक्लेश से मुक्ति मिलती है। बुद्धिबल में वृद्धि के लिए देवी स्कन्दमाता को मंत्रों के साथ छह इलायची चढ़ाएं। इस दिन सामर्थ्य अनुसार किसी कन्या को कोई भी ज्वेलरी भेंट करें।
मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी !!
आरती
जय तेरी हो स्कंद माता।
पांचवां नाम तुम्हारा आता ।
सबके मन की जानन हारी।
जग जननी सबकी महतारी ।।
तेरी जोत जलाता रहूं मैं?
हरदम तुझे ध्याता रहू मैं।
कई नामों से तुझे पुकारा
मुझे एक है तेरा सहारा ।।
कहीं पहाड़ों पर है डेरा।
कई शहरों में तेरा बसेर। ॥
हर मंदिर में तेरे नजारे।
गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥
भक्ति अपनी मुझे दिला दो।
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।|
इंद्र आदि देवता मिल सारे ।
करे पुकार तुम्हारे द्वारे ॥
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए।
तू ही खंडा हाथ उठाए ।|
वासों को सवा मचाने आयी ।
भक्त की आस पुजाने आयी ।।
"कात्यायनी रूप में भक्तों को मैं दिलाती हूं विजय
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति के रूप में उनकी पुत्री के रुप में जन्म लिया था। इसलिए मेरा नाम कात्यायनी है। मेरी आराधना से समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।
"सुनहले और चमकीले वर्ण, चार भुजाएं और रलाभूषणों से अलंकृत मेरा छठा स्वरूप कात्यायनी का है। इस रूप में मैं खूंखार और झपट पड़ने वाली मुद्रा में सिंह पर सवार हूं। मेरा आभामंडल विभिन्न देवों के तेज अंशों से मिश्रित् इंद्रधनुषी छटा देता है। मेरा यह छठवां विग्रह रूप है। और मेरी पूजा-अर्चना नवरात्रि के छठे दिन भक्तगण करते हैं। प्राणियों में मेरा वास 'आज्ञा चक्र' में होता है और योग साधक इस दिन अपना ध्यान आज्ञा चक्र में ही लगाते हैं। मेरे स्वरूपय में मेरी दाहिनी ओर की अपर वाली भुजा अभय देने वाली भुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा वर देने वाली मुद्रा में रहती है। बाई ओर की अपर वाली भुजा में मेने चंद्रहास खड्ग (तलवार) धारण की है, जबकि नीचे वाली भुजा में कमल का फूल है। एकाग्रचित और पूर्ण समर्पित भाव से मेरी उपासना करने वाला भक्त बड़ी सहजता से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति कर लेता है, वह इस लोक में रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव को प्राप्त कर लेता है। उसके रोग, शोक, संताप, भय के साथ-साथ जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। में अमोष फल देकर प्रत्येक क्षेत्र में विजय दिलाती हूँ।
मां कात्यायनी को चढ़ाएं शहद
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी का ध्यान गोधूली बेला में किया जाता है। ये मां अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करती हैं। मान्यता है कि अविवाहित कन्याएं अगर मां कात्यायनी देवी की पूजा करती हैं, तो विवाह का योग जल्दी बनता है और योग्य वर की प्राप्ति हाती है। मधु यानी शहद का भोग लगाकर मां कात्यायनी को प्रसन्न किया जा सकता है। इस दिन मां को प्रसन्न करने के लिए फूल और फल कन्याओं को भेंट करें।
मंत्र
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी
आरती
जय जय अंबे जय कात्यायनी।
जय जगमाता जग की महारानी ।।
बैजनाथ स्थान तुम्हारी ।
वहां वरदानी नाम पुकार| ।।
कई नाम है कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है ।।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कही योगेश्वरी भहिमा न्यारी ।।
हर जगह अन्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते ।।
कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।
झूठे मोह से छुड़ानेवाली।
अपना नाम जपनेवाली ॥
बृहस्थनिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो॥
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।
जो भी मां को भक्त पुकारे।
काल्यायनी सब कष्ट निवारे ॥
"कालरात्रि बनकर हरती हूं ग्रह-बाधा
"घने-अंधेरे की तरह एकदम गहरा काला रंग, तीन नेत्र, सिर के बाल बिखरे हुए, यही मेरा कालरात्रि रूप में सातवां विग्रह स्वरूप है। मेरे तीनों नेत्र ब्रह्मांड के गोले की तरह गोल हैं। मेरे गले में विद्युत् जैसी छटा देने वाली सफेद माला सुशोभित है। मेरी चार भुजाएं हैं। मेरा स्वरूप भयानक है, लेकिन मैं अपने भक्तों को शुभ फल ही प्रदान करती हूं। मेरा वाहन गधा है। भयानक स्वरूप होने के बावजूद शुभ फल प्रदान करने के कारण मुझे 'शुंभकरी' भी कहा जाता है। योगी साधकों द्वारा मेरा स्मरण 'सहस्रार चक्र' में ध्यान केंद्रित करके किया जाता है। मैं उनके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों की प्राप्ति के लिए राह खोल देती हूं। साधक के ऐसा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है । मेरे एक हाथ में चंद्रहास खड्ग तथा एक हाथ में कांटेदार कटार है तथा दो हाथ वरमुद्रा व अभय मुद्रा में हैं। मैं नकारात्मक, तामसी और राक्षसी प्रव्रत्तियों का विनाश करके भक्तों को दानव, दैत्य, राक्षस, भूत-प्रेत् आदि से अभय प्रदान करती हूँ। मैं स्मरण करने वाले भक्तों को शुभ वर प्रदान करती हूँ। मेरी उपासना से प्रतिकूल ग्रहों द्वारा उत्पन्न की जाने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं और जातक अग्नि, जल, जन्तु, शत्रु आदि के भय से मुक्त हो जाता है।
मां कालरात्रि को अर्पित करें गुड़
नवरात्रि का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। सप्तमी की रात्रि को 'सिद्धियों' की रात भी कही जाती है। इस दिन मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना से भक्तों के सभी दुःख-संताप दूर हो जाते हैं। ये शत्रुओं का नाश करते हुए अशुभ ग्रहों के दोष से मुक्ति दिलाती हैं। इस दिन माता को प्रसन्न करने के लिए गुड़ का नैवेद्य अ्पित करना चाहिए। इससे घर में दरिद्रता का वास नहीं रहता। इस दिन कन्याओं को रूमाल और खुशबूदार चीजें भेंट कर मां को आशीर्वाद लें।
मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता
! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
आरती
कालरात्रि जय-जय - महाकाली।
काल के मुंह से बचाने वाली ।
दुध्ट संधारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार ।।
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा ।
खडग खपर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली ॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेया नजारा ॥|
सभी देवता सब नर-नारी।
गावेे स्तुति सभी तुम्हारी।
रक्तदंता और अन्नपूर्णा ।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना ॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी
ना कोई गम ना संकट भारी।
उस पर कभी कष्ट ना आये।
महाकाल्ती मां जिसे बचावे।
तू भी भक्त प्रेम से कह?
कालरात्रि मां तेरी जय।
कालरात्रि जय-जय-महाकाली ॥
"महागौरी के रूप में दिखाती हूं सफलता की राह
"नवरात्रि के आठवें दिन जो भक्त भी मेरी पूजा श्रद्धाभक्ति के साथ करते हैं, उनके सारे असंभव कार्य सिद्ध हो जाते हैं। वह अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
"मेरा अष्टम् रूप 'महागौरी' का है। मेरे समस्त वस्त्राभूषण और यहां तक कि मेरा वाहन भी हिम् के समान सफेद या गौर वर्ण वाला वृषभ अर्थात् बैल है। वस्त्र और आभूषण श्वेत होने के कारण ही मुझे श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है। मेरी चार भुजाएं हैं। एक हाथ में डमरू और एक हाथ में त्रिशुल् है तथा अन्य दो हाथ अभय और वर मुद्रा में हैं। मैं मनुध्य की प्रवृत्ति को सत् की ओर प्रेरिति करके असत् का विनाश करती हूं। मेरा यह स्करूप भक्तों को तुरंत और अमोध फल प्रदान करता है। मेरी उपासना से भक्त के जन्म-जन्मांतर के सभी पाप और कलंक खत्मजाते हैं और मार्ग से भटका हुआ भी सन्मार्ग पर आ जाता है। भविध्य में पाप-संताप, निर्धनता, दीनता और दुख उसके पास नहीं फटकते। मेरी कृपा से साधक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है, उसे अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। मेरे आशीर्वाद के बाद भक्तों के जीवन में किसी वस्तु की कमी नहीं रहती। जो महिलाएं नित मेरी पूजा श्रद्धाभाव से करती हैं, वे स्दैव सौभाग्यवती रहती है। कुंवारी कन्याओं को योग्य वर तथा पुरुष को सुखमय जीवन तथा आनंद की प्राप्ति होती है।
महागौरी को नारियल का भोग
श्वेत वस्त्र धारण किए हुए ये माता भक्तों को पुत्रवत स्नेह करने वाली हैं। इनकी पूजा के बाद शहद, कमलगट्टे और खीर से हवन करने से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। नवरात्र के आठवें दिन पूजा-अर्चना कर नारियल का भोग लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। मान्यता है कि इस दिन नारियल की सिर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करने से हर प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं। महागौरी के पूजा करने के बाद पकवान, मिठाई, हलवा आदि कन्याओं को दान में दें।
मंत्र
श्वेतवृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा !!
आरती
जय महागौरी जगत की माया।
जया उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा।
महागौरी तेरी वहां निवासा ।
चंद्रकली ओर ममता अंबे।
जय शक्ति जय जय मां जगंदबे॥
भीमा देवी विमला माता ।
कौशिकी देवी जग विख्यता ।।
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेय।॥
सती हक्न कुंड में था जलाया।
असी शुएं ने रूप काली बनाया।
बना थर्म सिंह जो सवारी में आया।
तो शंकर ने त्रिशुल अपना दिख्वाय।।
तभी मां ने महागौरी नाम पाथा।
शरण आनेवाले का संकट मिटाया।
शनिवार को तेरी पूजा जो करता ।
मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।।
महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो ।।
"सिद्धिदात्री स्वरूप में प्रदान करती हूं सिद्धि और मोक्ष
"महानवमी यानी नवरात्र का अंतिम दिन। इस दिन सिद्धिदात्री स्वरूप में मेरी पूजा की जाती है। इस रुप में मे श्रद्धालुओं को समस्त प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हूं।
" मैं हूं चतुर्भुज सिंहवाहिनी सिद्धिदात्री। नवरात्रि के नौवें दिन मेरी पूजा की जाती है। गति के समय मे सिंह पर तथा अचला रूप में कमल पुष्प के आसन पर बैठती हूँ। मेरे दाहिनी ओर के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले दाहिने हाथ में गदा रहती है, बाँयी ओर के नीचे वाले हाथ में शंख तथा ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प विद्यमान है। अपने इस शक्ति विग्रह में मैं अपने भक्तों को ब्रह्मांड की सभी सिद्धियां प्रदान करती हूँ। नवरात्रि पूजन के अंतिम दिन भक्त और योगी साधक मेरे इसी रूप की शास्त्रीय विधि-विधान से पूजा करते हैं। मेरे इस स्वरूप की पूजा संसारी जन ही नहीं, बल्कि देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक आदि भी करते हैं । नव्रात्रि के सिर्फ नौवें दिन भी यदि कोई भक्त एकाग्रता और निष्ठा से मेरी विधिवत् पूजा करता है, तो उसे सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। सूष्टि में कुछ भी उसके लिए असंभव नहीं रहता। और ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। मेरी कृपा प्राप्त करने वाले की सभी लौकिक तथा परालौकिक कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
मोक्षदायिनी मां सिद्धिदात्री
ये देवी सब प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी पूजा-आराधना की जाती है। इनकी कृपा से मनुष्य सभी प्रकार का साद्धिया प्राप्त कर मोक्ष पाने में सफल होता है। इस दिन पूजन-हवन करने के बाद ही व्रत का पारायण किया जाता है। मां सिद्धिदात्री को हलवा, पूरी, चना, खर, पूए आदि का भोग लगाएं। इस देवी को प्रसन्न करने के लिए कन्याओं को वस्त्र, रुपये तथा भोज्य पदार्थ भेट में दें।
मंत्र
सिद्धगंधर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी ॥
आरती
जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता।
तू भकतों की रक्षक नू दासों की माता ।।
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि ॥
कठिन् काम सिद्ध करती हो तुम।
जब भी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदंबे दाती तु सर्व सिद्धि है ।
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी यूर्ति को ही मन में घरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे ।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया ।
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली ॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा ।।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता ।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता ॥
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