Thursday, 26 March 2020

रोग-शोक का विनाश करतीं मां शैलपुत्री


मां दुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापना के साथ इनकी पूजा की जाती है।

भगवती के पहले स्वरूप को शास्त्रों में शैलपुत्री कहा गया है । शैलपुत्री माता सती (पार्वती) का ही रूप हैं। माता सती के पिता, प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ करवाया और उसमें सभी देवी देवताओं को बुलाया, लेकिन भगवान शंकर और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा। माता सती को जब यह पता चला, तो वह भगवान शंकर के पास पहुंचीं और यज्ञ में जाने की इच्छा जाहिर की। भगवान शंकर ने कहा कि बिना निमंत्रण के यज्ञ में जाना श्रेयकर नहीं होगा, लेकिन माता सती की इच्छा के कारण भगवान शंकर ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। माता सती जब अपने पिता राजा दक्ष के यहां पहुंची, तो वहां परिजनों ने उनका उपहास उड़ाया और किसी ने ठीक से उनसे बात तक नहीं की। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत कष्ट पहुंचा। उन्होंने देखा कि वहां भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने भगवान शंकर के प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहें। यह सब देखकर उनका हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा, भगवान शंकर की बात न मान, यहां आकर बहुत बड़ी गलती की है। माता सती अपने पति के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रोधित होकर अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करवा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्मकर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुईं। हेमवती भी उनका ही नाम है। मां शैलपुत्री की आराधना से भक्तों को चेतना का सर्वोच्च शिखर प्राप्त होता है, जिससे शरीर में स्थित 'कुंडलिनी शक्ति जागृत होकर रोग-शोक रूपी दैत्यों का विनाश करती है। दुर्गा के पहले स्वरूप में शैलपुत्री मानव के मन पर आधिपत्य रखती हैं। जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने की शक्ति पर्वत कुमारी करजी ने मां शैलपुत्री ही प्रदान करती हैं । इनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में कमल का फूल रहता है इनका वाहन बैल है 'योग पुस्तकों' में इनका स्थान प्रत्येक प्राणी में 'नाभि चक्र' से नीचे स्थित मूलाधार चक्र' को बताया गया है। यही वह स्थान है, जहां आद्य शक्ति 'कुंडलिनी' के रूप में रहती हैं। इसलिए नवरात्र के प्रथम दिन देवी की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थिर करते हैं। पूर्वजन्म की भांति इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं।

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