Tuesday 7 April 2020

भारत का इतिहास :- शैव धर्म

शैव धर्म

सम्परदाय संस्थापक
आजीविका  मक्खलिपुत्र गोशाल,
घोर अक्रियावादी पूरण कश्यप्
यदृच्छावाद आचार्य अजित
भौतिकवादी पकुध कच्चायन (भौतिक दर्शन)
अनिश्चयवादी संजय घेट्ठलिपुत्र

> भगवान शिव की पूजा करनेवालों को शैव एवं शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा ग़या है।
> शिवलिंग-उपासना का प्रारंभिक पुरातात्त्विक साक्ष्य हड़ण्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है।
> ऋग्वेद में शिव के लिए 'रुद्र' नामक देवता का उल्लेख है।
> अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति एवं भूपति कहा गया है |
> लिंग-पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है ।
> महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग-पूजा का वर्णन मिलता है।

> 'वामन पुराण' में शैव सम्प्रदाय की संख्या चार बतायी गयी है। ये हैं-
(i) पाशुपत, (ii) कापालिक, आजीवक (iii) कालामुख, (iv) लिंगायत।

> पाशुपत सम्प्रदाय शैवों का सर्वाधिक प्राचीन सम्प्रदाय है। इसके संस्थापक लकुलीश थे। जिन्हें शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है।
> पाशुपत सम्प्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया है। इस मत का प्रमुख सैन्धान्तिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है श्रीकर पंडित एक विख्यात पाशुपत आचार्य थे।> कापालिक सम्प्रदाय के ईष्टदेव भैरव थे । इस सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्रश्री शैल नामक स्थान था।
> कालामुख सम्प्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा गया है । इस सम्प्रदाय के लोग नर-कपाल में ही भोजन, जल तथा सुरापान करते हैं और साथ ही अपने शरीर पर चिता की भस्म मलते हैं।
> लिंगायत सम्प्रदाय दक्षिण में प्रचलित था। इन्हें जंगम भी कहा जाता था। इस सम्प्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना करते थे।
> बसव पुराण में लिंगायत सम्प्रदाय के प्रवर्तक अल्लभ प्रभु तथा उनके शिष्य वासव को बताया गया है। इस सम्प्रदाय को वीरशिव सम्प्रदाय भी कहा जाता है।
> दसवीं शताब्दी में मत्स्येन्द्रनाथ ने नाथ सम्परदाय की स्थापना की इस सम्प्रदाय का व्यापक प्रचार-प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ।
> दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव एवं चोलों के समय लोकप्रिय रुहा ।
> पल्लव काल में शेव धर्म का प्रचार-प्रसार नायनारों द्वारा किया गया । नायनार सन्तों की संख्या 63 बताई गयी है जिनमें अण्पार, तिरुज्ञान, सम्बन्दर एवं सुन्दर मूर्त्ति आदि के नाम उल्लेखनीय है।
> ऐलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया।
>चोल शासक राजराज प्रथम ने तजौर में प्रसिद्ध राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया,
जिसे वृहदीश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
> कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिव एवं नन्दी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है

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