Wednesday 8 April 2020

भारत का इतिहास :- बौद्ध सभाएं

बौद्ध सभाएं


सभा समय स्थान अध्यक्ष शासनकाल
प्रथम बौद्ध संगीति 483 ई० पू० राजगृह महाकश्यप अजातशत्रु
द्वितीय बौद्ध संगीति 383 ई० पू० वैशाली सबाकामी कालाशोक
तृतीय बीद्ध संगीति 255 ई० पू० पाटलिपुत्र मोग्गलिपुत्त तिस्स अशोक
चतुर्थ बीद्ध संगीति ई० की प्रथम शताब्दी कुण्डलवन वसुमित्र/अश्वघोष कनिष्क
> चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्धधर्म दो भागों हीनयान एवं महायान में विभाजित हो गया।

> धार्मिक जुलूस का प्रारंभ सबसे पहले बौद्धधर्म के द्वारा प्रारंभ किया गया | बौद्धों का सबसे पवित्र त्योहार वैशाख पूर्णिमा है, जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसका महत्व इसलिए है कि बुद्ध पूर्णिमा के ही दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई।

> बुद्ध ने सांसारिक दुःखों के सम्बन्ध में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया। ये हैं-

(i) दुःख(ii) दुःख समुदाय(iii) दुःख निरोध(iv) दुःख निरोधगामिनी प्रतिपद्या।
> इन संसारिक दुःखों से मुक्ति हेतु, बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग की बात कही। ये साधन हैं-

(i) सम्यक् दृष्टि (ii) सम्यक् संकल्प (iii) सम्यक् वाणी (iv) सम्यक् कर्मान्त (v) सम्यक् आजीव (vi) सम्यक् व्यायाम् (vii) सम्यक् स्मृति एवं (viii) सम्यक् समाधि

> बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्गों के पालन करने के उपरान्त मनुष्य की भव तृष्णा नष्ट हो जाती है और उसे निर्वाण प्राप्त हो जाता है ।

> निर्वाण बौद्ध धर्म का परम लक्ष्य है, जिसका अर्थ है 'दीपक का बुझ जाना' अर्थात् जीवन-मरण चक्र से मुक्त हो जाना। 
बुद्ध ने निर्वाण-प्राप्ति को सरल बनाने के लिए निम्न दस शीलों पर बल दिया-

(i) अहिंसा, (ii) सत्य, (iii) अस्तेय (चोरी न करना), (iv) अपरिग्रह (किसी प्रकार की सम्पत्ति न रखना), (v) मद्य सेवन न करना, (vi) असमय भोजन न करना, (vii) सुखप्रद बिस्तर पर नहीं सोना, (viii) धन - संचय न करना, (ix) स्त्रियों से दूर रहना और (x) नृत्य-गान आदि से दूर रहना।

गृहस्थों के लिए केवल प्रथम पाँच शील तथा भिक्षुओं के लिए दसों शील मानना अनिवार्य था ।

> बुद्ध ने मध्यम मार्ग (मध्यमा-प्रतिपद) का उपदेश दिया।
> अनीश्वरवाद के संबंध में बौद्धधर्म एवं जैनधर्म में समानता है।

> जातक कथाएँ प्रदर्शित करती है कि बोधिसत्व का अवतार मनुष्य रूप में भी हो सकता है। तथा पशुओं के रूप में भी ।
> बोधिसत्व के रूप में पुनर्जन्मों की दीर्घ श्रृंखला के अन्तर्गत बुद्ध ने शाक्य मुनि के रूप में अपना अन्तिम जन्म प्राप्त किया किन्तु इसके उपरान्त मैत्रेय तथा अन्य अनाम बुद्ध अभी अवतरित होने शेष हैं।
> सर्वाधिक बुद्ध मूर्त्तियों का निर्माण गर्धार शैली के अन्तर्गत किया गया लेकिन बुद्ध की प्रथम मूक्त्ति संभवतः मथुरा कला के अन्तर्गत बनी थी।

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