Monday 30 March 2020

तेज और प्रताप बढ़ाती माँ कात्यायनी




मां कात्यायनी की उपासना करने वाले भक्त बड़ी सहजता से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थं को प्राप्त कर लेते हैं।

माँ कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं।व्यक्ति का भाग्य उसके आंतरिक अदृश्य जगत से संचालित होता है। वह जगत जो अदृश्य है, हमारी इंद्रिया भी उसका अनुभव नहीं कर सकतीं और जो हमारी कल्पना से परे है। वही जगत मां कात्यायनी के प्रताप से संबंधित है । नवरात्र के छठे दिन मां के कात्यायनी रूप का ध्यान, पूजन करने से भक्त के आंतरिक सूक्ष्म जगत में चल रही नकारात्मकता का नाश होता है और सकारात्मकता का विकास होता है। सुनहरे और चमकीले वर्ण वाली, चार भुजाओं वाली और रत्नाभूषणों से अलंकृत कात्यायनी देवी खूंखार और झपट पड़ने वाली मुद्रा में रहने वाले सिंह पर सवार रहती हैं इनका आभामंडल विभिन्न देवों के तेज अंशों से मिश्रित इंद्रधनुषी छटा देता है। प्राणियों में इनका वास 'आज्ञा चक्र' में होता है और योग साधक इस दिन अपना ध्यान आज्ञा चक्र में ही लगाते हैं। माता कात्यायनी की एक भुजा अभय देने वाली मुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा वर देने वाली मुद्रा में रहती है। बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वे चंद्रहास खड्ग (तलवार) धारण करती हैं, जबकि नीचे वाली भुजा में कमल का फूल रहता है। एकाग्रचित और पूर्ण समर्पित भाव से कात्यायनी देवी की उपासना करने वाला भक्त बड़ी सहजता से धर्मधर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति कर लेता है। सच्चे साधक को मां कात्यायनी दर्शन देकर कृतार्थ करती हैं। वह इस लोक में रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव को प्राप्त कर लेता है। मां कात्यायनी की सच्चे मन से पूजा करने वाले जातक के रोग, शोक, संताप, भय के साथ-साथ जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। इनकी निरंतर उपासना में रहने वाला जातक परम पद प्राप्त करता है। मां कात्यायनी की उपासना से तेज बढ़ता है और भक्त की ख्याति भी दूर-दूर तक फैल जाती है। मां अपने भक्तों को निराश नहीं करतीं।



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