1. आपका लिवर शरीर की सबसे बड़ी लेबोरेटरी है। लिवर
की बदौलत ही शरीर का आंतरिक वातावरण सम, स्वच्छ और
स्वास्थ्यवर्धक रहता है। बाहर से आए और अंदर उत्पन्न सभी विषैले पदार्थों का नाश
लिवर ही करता है।
2. पोषक तत्वों का निर्माण यहीं होता है। निर्माण और
विकास के लिए आवश्यक प्रोटीन्स लिवर ही बनाता है। ऊर्जा के लिए जरूरी ग्लूकोज का
ग्लाइकोजेन के रूप में संचय यहीं होता है।
3. लिवर में तीन तरह की रक्त वाहिनियां होती हैं।
धमनियां, जो ऑक्सीकृत शुद्ध रक्त लाती हैं। शिराएं, जो अशुद्ध रक्त ले जाती हैं और पोर्टल शिराएं, जो आंतों से शोषित तत्वों वाला रक्त शुद्धिकरणं के लिए पहले लिवर तक
लाती हैं। लिवर की लेबोरेटरी में जांच, परिष्कृत और
प्रामाणिक होने पर ही तत्व हृदय के रक्त में पहुंचते हैं।
4. देश में लिवर की बीमारियों से मरने वाले लोगों
में सबसे अधिक रोगी शराबजनित लिवर सिरोसिस और हेपेटिक फेलियोर से मरते
हैं।
5. लिवर शरीर का एकमात्र अंग है, जो नष्ट होने पर पुन: निर्माण कर अपना
नवीनीकरण कर सकता है। लिवर का रिजर्व पावर विलक्षण
होता है, आधे से अधिक नष्ट होने पर ही यह तकलीफ देता है।
6. पित्त लिवर में ही 'बनता है, लिवर में ही छनता है और वहां से छन कर ही पित्त
की थैली और आंत में आता है।
7. वायरल हेपेटाइटिस (विषाणुजनित लिवर शोथ रोग) चार
वायरस से होता है। हेपेटाइटिस ए, बी, सी और ई। इनमें बी और सी रक्त और यौन प्रसारित और ए एवं ई खाने-पीने
की चीजों के मल से संक्रमण से यानी मल-मुख मार्ग द्वारा प्रसारित होते हैं। भारत
में हेपेटाइटिस ई की महामारी आम है।
8. पित्त-रंजक (पिगमेंट्स), मृत लाल रक्त कणों के हीमोग्लोबिन के विभाजन से बनते हैं विभाजन कर
लौह तत्व वापस उपयोग के लिए और पिंत रंजक पाचन के लिए भेज दिए जाते हैं।
9. पीलिया रक्त में पित्त-रंजकों की मात्रा के अधिक
होने की अवस्था को कहते हैं। पीलिया स्वयं में कोई रोग नहीं है। एकल अंग होने पर भी इसका आधा भाग दान किया जा सकता है। बचा हुआ आधा पुनः निर्माण कर लेता है।
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